Nov 22, 2012

डूबते को तिनके का सहारा : the last straw


डूबते को उसने दिया सहारा एक तिनके की तरह 
फिर से याद किनारा दिला दिया मसीहे की तरह 

जैसे तिनके ने सिर्फ एक ऊँगली थमाई थी 
उसने भी तो बस एक ही बात समझाई थी 

कितना तुम बोल देते हो कि शब्द बहरे हो जाते हैं 
 अपने ही नहीं होते पराये किनारे भी दूर हो जाते हैं 

चुप हो जाओ अब तुम मैँ तो हूँ आ ही गया 
किनारा अभी भी बहुत ज्यादा दूर है नहीं गया 

साँसों को समेटते समय की उस बाढ़ में मैने कहा था 
किनारा मिल भी गया तो क्या मेरा अब सब है बह गया 

कुछ नहीं बहा है तुम्हारा  सिर्फ तुम बह जाते हो 
चलो किनारे देखें तुम क्या नया कर दिखाते हो 

स्तब्ध रह गया में उसकी तिनके जैसी सादगी पे 
कह दिया उसने तिनका ही हूँ में आशियाना मत बनाना 

डूब रहे हो तुम इस लिए ही सिर्फ मेरा काम है बचाना 
कल्पनाओं में अगर डूबोओगे तो तुम्हीं मुझे किनारे ले जाना 

डूबना भूल गया मैं क्यूंकि शब्दों के उसने डुबो ही दिया था 
कहाँ से आ गए फिर सारे जिनका मैंने आसरा छोड़ दिया था 

मुझे तो ले चले अब सारे फिर से किनारे की ओर  
मेरे उस तिनके को उन्होंने वहीँ बहने दिया छोड़ 

चीखने को किया मन, तुम सब पराये हो सच में 
क्यों मेरे एक ही अपने को मंझदार में छोड़ आये हो 

याद आ गया ऊँगली के उस स्पर्श से चुप करवाया था 
और उस पल ही समझाया था बह जाऊँगा तिनका हूँ 

हवा के झोंके पे आया था समय की धार पे चला जाऊँगा 
अगर फिर न रुलाना चाहो कभी तो रहना अब शांत फिर आऊंगा

मिलेंगे हम बार बार चाहे नौका में हो न हो पतवार 
ना मुझे हवा के झोंके की ज़रुरत होगी न लगेगी तुम्हें बौछार  

जब जब करोगे मुझे याद अपनी दवात से स्याही ले लेना 
तुम्हारे हर लिक्खे शब्द की कलम मैं ही हूँ अब चाहो जब मिल लेना 




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