रहो अब इतनी दूर की तुम ना ही आ पाओ
अगर आ ही गयीं तुम तो फिर हम बिछड़ेंगे
अब तो सुकून आ चूका है वर्ना फिर तड़पेंगे
बिछड़ेगा सब कुछ सबका ये ही तोह है सार
क्यूँ मिलते हो मुझसे औ बिछड़ते बार-बार
रहो अब इतनी दूर की तुम ना ही आ पाओ
अगर आ ही गयीं तुम तो अरमान जगेंगे
अगर आ ही गयीं तुम तो अरमान जगेंगे
नभ से तारे सुबह होते ही फिर छोड़ भागेंगे
रहें अब हम इतनी दूर की ठीक से देख पायें
करीब इतने रहे हैं कि कभी समझ ही नहीं आये
मत आओ मेरी कामना अब तुम मत आओ
रहो अब इतनी दूर की तुम ना ही आ पाओ
इतना खो खो के ही तो अब तक हम पाए हैं
मिल गए इबकी तो समूचे ही खो जायेंगे
अगर आ ही गयीं तुम तो फिर श्वास आयेंगे
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