Dec 12, 2012

आँसू : अब कभी मत आना

आँसू : अब कभी मत आना 


भरी दोपहर अपने अपने अँधेरे में घिरे,
कैसे वोह पल हमने साथ साथ गुज़ारे ।

आती जाती रौशनी के बीच साथ हँसे थे,
पर अपने अपने आंसूं अकेले ही बहे थे ।



कुछ भी बांट लेने को तो तैयार थे अब हम, 
छिपाया फिर भी हमने अपना अपना गम।

ना ही था कोई डर  ना किसी का कोई भय,
सता के गया हमें बस हमारा ही समय ।

हुआ एहसास की थाम के हाथों से हाथ,
कह दें आपस में कि अभी तो हैं साथ ।

मनों ने कहा एक दुसरे को मान जाओ,
आंसूं बोले आज अकेले अकेले ही बहाओ ।

ढलती दोपहर पे जब रौशनी लौट आई थी,
सूनी आँखों को सूनी आँखें ही दी दिखाई थीं ।   



एक थाली से हमने साथ निवाले खाए थे,
साथ एक ही सुरा के प्याले भी छलकाये थे।

हम बिलकुल चुप रहेंगे यह फैसला किआ था,
हमारे दर्द ऐसे में साथ हो जायेंगे नहीं पता था।


बिना कहे पूछे कुछ भी ले और दे सकते थे,
कोशिश बहुत की आँसू कभी नहीं बाँट पाए थे । 

पास पास हो कर भी हमेशा यूँ दूर से रहे थे, 
जहाँ भाव को भाव हमेशा छू ही रहे थे ।

ना मत ही आना अब मेरे ऐ हमसफ़र,
हाथों में लेके हाथ पूछूँगा साफ़ इस बार।  

आँखों को आँखें फिर क्या यही बतायेंगी,
अपनी अपनी अश्रु धारा खुद ही बहाई जायेंगी।

आंसूं अब मत कभी आना लेके कोई भी बहाना 
आना हो जब बस युहीं बिन बुलाये चले आना  

 
आ ही गए इतना जान के भी तो बाहों में लूँगा,
सच्चे दिल से आपसे फिर एक बात ही पूछूँगा।

क्यूँ रह गए दूर इतने दिनों तक जब आना ही था
कहना जिस आँख का आंसू था उसी से बहाना था।

एक दुसरे के आंसू कैसे फिर हम अब पोंछें,
दर्द के कच्चे धागे की डोर ही अब हमें खींचे ।

ज़िन्दगी ही तो बाँट सकते थे  हम चाहते जब,
मौत तो अपनी अपनी ही  आएगी जाने कब ।

 जितनी ही कोशिश की आँसू हम नहीं बाँट पाते हैं,
दर्द ही तो है जो रखता दूर से भी हमें पास पास है।  

आगोश में अब ले लूँगा येह सोच समझ के ही तुम आना,
बँटते नहीं इसलिए कह दूंगा आँसू अब कभी मत आना । 

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